किस्मत हुई मेहरबान। तीसरा दिन 14-02-2020
चंडीगढ़ में ठंड इतनी ज्यादा है कि, मैं रात में दो रजाई ओढ़ कर सोया। सुबह अलार्म बजने से पहले ही उठ गया। हालांकि जल्दी उठना मेरी आदत में नहीं है। मगर मनाली जाने का उत्साह ही इतना है कि अपने आप आंख खुल गई।
नरेंद्र जी को बिना जगाए, मैं चंडीगढ़ की पहली सुबह का आनंद ले रहा हूं। साथ ही साथ मनाली जाने की रणनीति भी बना रहा हूं। काउच सर्फिंग के इतने शानदार अनुभव से मैं काफी खुश हो गया। मैं सोचने लगा क्यों ना मनाली मैं भी इसी ऐप के माध्यम से रुका जाए। एक बार फिर से किस्मत आजमा ली जाए।
मैं बेधड़क रिक्वेस्ट भेजने लगा। मुझे इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं है, कि बिना मेंबरशिप के केवल दस ही रिक्वेस्ट भेज सकते हैं। सात रिक्वेस्ट का प्रयोग तो चंडीगढ़ रुकने के लिए ही कर लिया था और तीन रिक्वेस्ट का आज प्रयोग कर लिया, तीनों की तीनों रिजेक्ट हो गई। अब दुबारा रिक्वेस्ट भेजने की अनुमति सात दिनों के बाद मिलेगी। मैं द्वंद में हूं, अब क्या करूं होटल भी नहीं ले सकता क्योंकि आईडी तो पर्स में ही रह गई और नगद पैसों की भी कमी है।
काफी सोच विचार करने के बाद अचानक मुझे एक उपाय सूझा। मैंने काउच सर्फिंग(Couchsurfing) से मेजबानो (HOST) की एक सूची बनाई तथा उन्हें इंस्टाग्राम और फेसबुक पर खोजने लगा। मुश्किल नाम खोजने में आ रही है, काउच सर्फिंग(Couchsurfing) ऐप पर या तो अधूरे नाम है या असली नाम। आजकल लोग, असली नाम से सोशल मीडिया अकाउंट का नाम भी नहीं रखते हैं। मिसाल के तौर पर असली नाम अमर और सोशल मीडिया अकाउंट का नाम इमोर्टल (immortal होता है। में अंधेरे में तीर लगाने की कोशिश कर रहा हूं। संयोग से कुछ लोग मिले और कुछ नहीं। जो मिले उनको मैंने तुरंत मैसेज कर दिया और इंतजार करने लगा उनके रिप्लाई का।
इतने में नरेंद्र जी भी उठ गए मैं उनसे बातें करने लगा और हर दूसरे मिनट में मैसेज देखने लगा। इस तरीके के सफल होने की उम्मीद उतनी ही है, जितनी भूसे के ढेर में सुई मिलने की है। पर उम्मीद तो कर ही सकते हैं, वैसे भी उम्मीद पर दुनिया कायम है।
नरेंद्र जी नाश्ता बनाने लगे, मैं भी उनकी मदद करने लगा। थोड़ी देर में नाश्ता बनकर तैयार हो गया। नाश्ता करते समय इंस्टाग्राम पर एक मैसेज आता है, मैं तुरंत देखता हूं। वह हुआ जिसकी उम्मीद मुझे बहुत कम ही थी। मैने मैसेज तीन बार पढ़ा की ये सच ही है ना।
एक मेजबान(HOST) का रिप्लाई आता है। साबी नाम से।
यहां किस्मत ने मेरा भरपूर साथ दिया। उन्होंने बताया कि वह मुझे रुकवाने को तैयार हैं मगर एक शर्त है। केवल एक रात के लिए रुक सकता हूं। मैंने तुरंत हामी भर दी। मैं ना तो कर ही नहीं सकता, जिस बात की उम्मीद ना के बराबर हो, उसको पूरा होना ही बड़ी बात है।
यह भी बताया कि वह केरल से हैं। यह सुनकर मुझे काफी अजीब लगा। केरल से! और मनाली में घर है। इन बातों पर अभी तर्क करने का कोई मतलब नहीं, आप सभी को तो याद ही "विश्वास का खेल" GAME OF FAITH तो बस, मैं तैयार होगा गया यह रिस्क लेने को। पता पूछने पर उन्होंने बताया कि उनका घर हडिंबा मंदिर के पास ही है। हडिंबा मंदिर, जोकि मनाली के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है।
ठहरने की व्यवस्था होने के बाद, मनाली जाया कैसे जाए मैं इस बात पर विचार करने लगा। कुछ समय सोचने के बाद मैंने तय किया हिच हाईक (HITCHHIKE) करते हुए जाऊंगा। आसान भाषा में लिफ्ट लेकर यात्रा करते हुए। यह तरीका यूट्यूब पर बेहद कम बजट में वर्ल्ड टूर कर चुके कई घुमक्कड़ों द्वारा सुना था। इस तरीके से यात्रा करने के फायदे और नुकसान दोनों ही हैं।
इस तरीके से यात्रा करना ही रोमांचक है, मुझे कई लोगों से मिलने को मिलेगा। वहां के बारे में जानने को मिलेगा, सही मायनों में असली यात्रा तो यही है। परंतु नुकसान भी है, कि इस बात का कोई भरोसा नहीं कि मुझे पहुंचने मै कितना समय लगेगा। समय पर लिफ्ट मिलेगी या नहीं। डर भी है कुछ भी हो सकता है और नहीं पहुंच पाया तो रात को रुकूंगा कहां? यह भी दिक्कत है। पर कोई मेरे पास छीन भी क्या लेगा, दो जोड़ी कपड़े और एक फोन के अलावा कुछ नहीं है। बस फिर मैंने तय कर लिया, जाना है तो हिच् हाईक करते हुए वह भी बिना एक रुपए खर्च किए हुए। यह चुनौती मैंने खुद को दी।
मैं तैयार होने में बिल्कुल समय नहीं गंवाया। नरेंद्र जी ने भी बताया कि वह ऑफिस जाते समय मुझे सही रास्ते पर छोड़ देंगे। सबसे जरूरी फोन को भी फुल चार्ज कर लिया है और तय किया जितना हो सके उतना कम चलाना है। थोड़ी देर बाद हम घर से निकल गए।
आज चंडीगढ़ में मौसम एकदम साफ है एकदम चटक धूप निकली हुई है। कार में बैठे बैठे हैं चंडीगढ़ को भी देख रहा हूं। जैसा कि मैंने सुना था कि चंडीगढ़ शहर बेहद साफ एवं व्यवस्थित है, यह चंडीगढ़ देखकर लग भी रहा है वाकई में काफी सुंदर शहर है । सबसे ज्यादा ताज्जुब तो ट्रैफिक नियमों की पूर्ण रूप से पालना होते हुए देखने पर हुआ। यह देखकर अच्छा भी लगा। चलो कहीं तो ट्रैफिक नियमों की कड़ाई से पालना हो रही है। ऐसा पूरा भारत में हो जाए तो कितना अच्छा हो।
रास्ते में मैंने नरेंद्र जी से मनाली जाने वाले रास्ते की पूरी जानकारी ले ली और गूगल मैप्स पर माथापच्ची करने के बाद पूरे रूट को रट लिया। 290 किलोमीटर के सफर को मैंने कई टुकड़ों में बांट दिया। यह भी तय किया यदि आज रात तक मनाली नहीं पहुंच पाता हूं, तो रास्ते में बिलासपुर गुरुद्वारे में रुक जाऊंगा जोकि 117 किलोमीटर दूर है। कम से कम इतना सफ़र तो आज तय करना ही है। थो
थोड़ी देर बाद नरेंद्र जी ने मुझे सही रास्ते पर छोड़ दिया।हालांकि यह रास्ता उनके ऑफिस वाले रास्ते से अलग रास्ते पर है। मगर मुझे तकलीफ ना हो इसलिए मेरी मदद कर दी। हमने यह भी तय किया की पुष्कर होली में दोबारा मिलेंगे। उनकी मेहमान नवाजी से मैं काफी प्रभावित हुआ। ऐसा बिल्कुल लगा ही नहीं कि कल तक हम एक दूसरे को जानते तक नहीं थे। यात्रा के दौरान चंडीगढ़ में एक सच्चा दोस्त पाया।
अब सबसे पहले मुझे सेक्टर 43 वाले आईएसबीटी बस अड्डे पर जाना है। तो मैं पहली लिफ्ट का जिसका इंतजार करने लगा। शुरुआत में काफी झिझक महसूस हो रही है, लिफ्ट मांगने के लिए सही से हाथ भी ऊपर नहीं हो रहा है। थोड़ी हिम्मत जुटाकर आधे अधूरे मन से मैंने लिफ्ट मांगना चालू कर दिया, मात्रा 25 मिनट के अंदर ही मुझे पहली लिफ्ट भी मिल गई, आईएसबीटी बस अड्डे जाने के लिए।
वह भी एक लग्जरी कार मैं काफी खुश हो गया। शुरुआत काफी अच्छी रही लिफ्ट देने वाले जनाब बैंक में मैनेजर है। सवाल जवाब करने पर मैंने बताया कि मैं कहां और किस तरीके से जा रहा हूं तो उन्हें बड़ा अचंभा हुआ और मेरी हिम्मत की दाद देने लगे। इससे मैं काफी मोटिवेट हुआ। थोड़ी देर में आईएसबीटी बस अड्डे पर पहुंचा और खाने पीने की चीजों का इंतजाम करने लगा।
मनाली जाने के लिए बसें भी यहीं से लगती है। मैंने रास्ते के
लिए बिस्किट, चिप्स, केले और भी कुछ खाने के सामान बैग में भर लिया। मुझे अंदाजा हुआ की रास्ते में नगद पैसों की जरूरत पड़ेगी, जबकि नगद पैसे मेरे पास बहुत कम है। अब ना मेरा यहां कोई दोस्त है, ना कोई जानकार। किसको फोन पे या पेटीएम करूं। दो चार दुकान वालों से पूछा तो उन्होंने मना कर दिया।
मैंने फिर से एक तरकीब निकाली क्योंकि मुझे पता है आगे ठंड बढ़ेगी। इस बात का अंदाजा होते हुए मैंने एक एक मफलर खरीद लिया और दुकानदार को बिना बताए एक हजार रुपए फोन पे कर दिए। बोला गलती से सेंड हो गए फिर क्या है, मफलर दो सौ का है, आठ सौ मैंने नगद ले लिए। दुकानदार भी खुश, मै भी खुश। तभी तो हर भारतीय जुगाड़ में माहिर होता है। सब चीजो का इंतजाम होते ही,
मैं
निकल पड़ा अनिश्चितताओ वाले मनाली हाईवे की ओर।
बाकी के भागो के लिंक -
Wahhh mere sher ......gjb bro.
जवाब देंहटाएं👍👍
हटाएंशानदार जिंदाबाद जबरजस्त....👌👌👌
जवाब देंहटाएंजिंदाबाद
हटाएंMotivational journey
जवाब देंहटाएं��������🤞🤞🤞🤞
जवाब देंहटाएंNice work keep posting interesting stories
जवाब देंहटाएंDefinitely...
हटाएंGazabb bhai i will also try this ASAP.
जवाब देंहटाएंBilkul 👍👍👍
हटाएंAager Deelme chal kapt
जवाब देंहटाएंNahi ho to or sadgi va
Good corrector ho to
Insan kahi bhi chala Jaye
Safalta us ke kadam
Chumti ha
Hath Ka pakka va corrector Ka sacha ho
Na jaruri ha Sa
R.D.Singh Newai
Nice brother 👌🏼👍🏼
जवाब देंहटाएं