तीसरा दिन- इंतजार (14 व 15 फरवरी 2020)
बिलासपुर में भोजनालय पर बैठे-बैठे अनिश्चितता के भंवर में भयंकर रूप से उलझ रहा हूं। एक तो मुझे आज रात ही पहुंचना है दूसरा ना मेरे पास टेंट है, ना सर्दी का पूरा इंतजाम। यदि टेंट और स्लीपिंग बैग भी होता तो लिफ्ट ना मिलने की स्थिति में बाहर भी सो सकता था। परंतु परिस्थिति तो ऐसी है कि गर्म कपड़े भी पूरे नहीं है।
मैं बीच रास्ते मैं छोड़ने वाली लिफ्ट तो बिल्कुल नहीं ले सकता। सिर्फ और सिर्फ सीधी मनाली जाने वाले वाहनों में ही बैठना है। हकीकत यह भी है कि सीधे मनाली जाने वाले वाहनों के मिलने की संभावना बहुत कम है। दिक्कत यह भी है रात के समय कोई लिफ्ट भी नहीं देता। यदि मैं लिफ्ट लेकर यात्रा करता हूं तथा बीच रास्ते में लिफ्ट या मदद नहीं मिली तो, यह स्थिति किसी डरावने सपने के साकार होने जैसी होगी। जो कि मैं नहीं चाहता ऐसा हो।
समय बिल्कुल रेत की तरह फिसल रहा है। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा हूं। मैंने साबी को भी फोन करके बताया, मुझे पहुंचने में 2:00 बज जाएंगे। यह सुनकर उसने बताया कि मुझे जल्दी आना होगा, नहीं तो रात में घर नहीं ढूंढ पाओगे। क्योंकि घर जंगल व ऊंचाई पर है। ज्यादा रात में जंगली जानवरों को खतरा भी रहता है। यह सुनकर मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। यह सूचना कम चेतावनी ज्यादा लगी।
मुझे अब और भी जल्दी होने लगी। ना चाहते हुए भी मुझे बस लेने के बारे में सोचना पड़ रहा है। जो कि मैं बिल्कुल नहीं चाहता था, पर परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत हो रही है। ऐसी यात्रा को परिस्थितियों के साथ सामंजस्य बैठाकर ही सफल किया जा सकता है। मैंने भी परिस्थिति की गंभीरता को भाप कर बस मैं जाने का निर्णय कर लिया।
(कॉमेंट बॉक्स में अपनी राय जरुर दे कि मैने बस लेकर सही किया या नहीं या फिर हिच हाईक करते हुए है जाता?)
अब बिना समय गवाए, मैं बस का इंतजार करने लगा। मुझे लगा बस मिलने में आधा घंटा तो लगेगा ही, क्यों ना साथ में लिफ्ट के लिए भी पूछा जाए। इस उम्मीद में कि सीधा मनाली के लिए कोई वाहन मिल जाए। पर बस मानो मेरा ही इंतजार कर रही हो जैसे, 5 मिनट भी नहीं हुए और आ गई।
अभी 7:30 बज रहे है, मुझे लगा 12 बजे तक पहुंच जाऊंगा। सोचा कंडक्टर से भी पूछ लिय जाए, पूछने पर उन्होंने बताया कि पहुंचने में 1 तो बज ही जाएगा। ये भी बताया आगे रास्ता खराब है। पहाड़ों को काटने का काम भी चलता रहता है। तो जाम लगने के कारण देरी भी हो सकती है। मुझे बस में आने का निर्णय सही होता नजर आने लगा।
बस ज्यादा भरी नहीं है, तो मुझे सीट मिल गई। काफी देर से कुछ खाया भी नहीं है, कुछ चिप्स और बिस्किट भी खा लिया। जैसे ही पेट में वजन गया, आंख कब लग गई पता ही नहीं चला। आंख खुली मंडी पहुंचने पर। मंडी पहुंचने में भी 2 घंटे से ऊपर लग गए। जोकि बिलासपुर से केवल 70 किलोमीटर दूर है। पर रास्ता ऐसा की बस की औसत रफ्तार 30 किलोमीटर प्रतिघंटा के लगभग रही होगी।
मंडी पहुंचने पर बस लगभग खाली हो गई। मौके का फायदा उठाकर मैंने भी बिल्कुल आगे की सीट पकड़ ली। ड्राइवर के बगल वाली। सोचा कुछ तो दिखेगा, पर रात के अंधेरे में कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है, सिवाय रोड के। पर फिर भी जिस रोड पर भारत का हर युवा अपनी बुलेट(BULLET) दौड़ना चाहता हो। उसको देखने का भी रोमांच हैं। रोड बिल्कुल ऐसा है जैसे सांप हजार कुंडली मार कर बैठा हो। बिल्कुल इतनी ही जगह छोडी गई है कि, बमुश्किल दो वाहन ही निकल सके। कुछ जगह तो इतनी जगह भी नहीं है। मै अंधेरे में भी फोटोस लेने की नाकाम कोशिश भी करता रहा।
मनाली अब 100 किलोमीटर से कम दूरी पर है। पहाड़ों पर बसे घरों की लाइटें, तारों के सामान टिमटिमा रही है। कुछ घर तो पहाड़ों की चोटियों पर है, उनमें जलती लाइटें बिल्कुल वैसे ही लग रही है जैसे केक पर लगी मोमबत्ती हो। मुझे हर बार लगता बस अब थोड़ी रफ्तार पकड़ेगी। पर हर बार मेरा आकलन गलत साबित हो जाता। जैसे ही बस खाली हुई, ड्राइवर ने छोटे स्पीकर में गाने चला दिए। इतने चुनिंदा पुराने गाने मानो इसी रास्ते पर बजाने के लिए बनाए हो। में कायल हो गया ड्राइवर अंकल की गानों कि पसंद का ओर बस चलाने की कुशलता का। कितनी आसानी से इतने खतरनाक रास्ते पर बस चलाने के पीछे उनका कई साल का अनुभव नजर आ रहा है।
मैने पूछ भी लिया अंकल कितने साल हो गए इस रास्ते पर बस चलाते हुए? जवाब आया सिर के बाल काले से सफेद होकर उड़ गए। ये सुनकर मुझे हंसी आ गई। जवाब एकदम सटीक दिया।
इतना इंतजार कर लिया मनाली पहुंचने का की, हर किलोमीटर बताने वाले बोर्ड को देख रहा हूं, अब कितने किलोमीटर बचे है। रास्ते में पहाड़ काटने का कार्य भी प्रगति पर है, पर जाम इतना लंबा नहीं मिला। मंडी से मनाली वाला मार्ग पहाड़ों से गिरे पथरो से भरा हुआ है। रास्ते में एक बड़े पहाड़ को बीच में से काट के, मंडी को कुल्लू से जोड़ने के लिए एक सुरंग भी बनाई है।
कुल्ल पहुंचते पहुंचते 12 बज गए। कुल्लू से मनाली मात्र 45 किलोमीटर है। रास्ता भी गजब का है । काश ऐसा पूरा मार्ग होतो तो इतना समय नहीं लगता। सोए हुए पहाड़ों के बीच सिर्फ हमारी बस व व्यास नदी की आवाज आ रही है। अब इंतजार बढ़ता जा रहा है। जैसे जैसे मनाली के करीब जा रहा हूं। बार बार तापमान देख रहा हूं, फोन में। हर किलोमीटर आगे बढ़ने के साथ माइनस में जा रहा है।
मनाली पहुंचने में 1:30 बज गए। बस से उतरने वाले सिर्फ 5 लोग ही बचे है। उनमें भी दो तो कंडक्ट व ड्राइवर ही है। बस स्टैंड एकदम सुनसान हो चुका है। एक चाय की थड़ी के अलावा कुछ भी नहीं खुला है। ठंड के कारण मेरे पैरो ओर हाथो की अंगुलियों है भी या नहीं, ये कम ही महसूस हो रहा है। हड्डियां कपा देने वाली ठंड महसूस हो रही है।
मैने साबी के ऐड्रेस की लोकेशन मैप्स पर डाली, तो लोकेशन 9 किलोमीटर दूर बता रही है। ये देखकर में घबरा गया। मैने तुरंत फोन किया पर कोई जवाब नहीं आया। सोचा पहले हड़िंबा मंदिर जाता हूं। वहा पहुंच के फोन करूंगा। ये मंदिर भी कुछ 3 किलोमीटर दूर दिख रहा है, मैप्स पर। मनाली के रास्तों का बिल्कुल अंदाज़ा ना होते हुए भी, पूरी रफ्तार के साथ मंदिर की तरफ दौड़ लगा दी। लगातार फोन भी कर रहा हूं साबी के पास। मेरे पास उसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है, रुकने का। बाहर रात गुजारने की सोच के भी डर लग रहा है। फिर भी मैंने एक माचिस खरीद ली स्टैंड पर से। सोचा कुछ भी हो सकता है तो आग जलाने के लिए भी कुछ चाइए।
लगातार 8 फोन करने के बाद साबी ने फोन उठाया। मैने उसे बताया की, मै हड़िंबा मंदिर 15 मिनट में पहुंच जाऊंगा। मुझे उसकी केरल वाले लहजे में इंग्लिश काफी कम समझ आ रही है। बस इतना समझ आया कि स्नो पीक ट्री होटल के पास आ जाओ। मेरे पास लोकेशन भी भेज दी।
रास्ता कुछ समझ नहीं आ रहा है। तापमान माइनस 6 डिग्री के आसपास हो रहा है। अभी तक जितना पैदल चल के में आया था, स्नो पीक ट्री होटल जाने के लिए मुझे वापिस वही रास्ता तय करना है। जिधर से में आया हुं। मैप्स के भरोसे इतनी तेजी से चल रहा हूं की ठंड के बावजूद भी, पसीने से भीग चुका हूं। मै किसी बावले हाथी कि तरह इधर उधर भाग रहा हूं। चड़ाई पे दौड़ते हुए सांस एकदम फूल रही है, पर में रुक नहीं सकता। मनाली पहुंचने में मुझे 16 घंटे लग गए। अभी भी मै इस इंतजार में हूं कि स्थिति कब सही हो।
(कृपया आगे क्या हुआ होगा ये भी कॉमेंट बॉक्स बताए)
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Abhilash Singh
Dil krta h hum bi hote aap ke saat ro
जवाब देंहटाएंMind blowing 🙏🙏
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंGajab
जवाब देंहटाएंGajab🙏🙏👍
जवाब देंहटाएंवाह भाई वाह, पढ़कर उस संकरे रास्ते की अनुभूति प्राप्त हुई ।
जवाब देंहटाएंYehi kosis hai meri bast aap tak pahuche
हटाएंgoosebumps de rhi ye story ..
जवाब देंहटाएंvah abhilash maja aa gya
Dhanyawad ankit bhai
हटाएंGjb &superb
जवाब देंहटाएंDhanyawad
हटाएंSir ke baal kaale se safed hoker udd gaye 😂😂.
जवाब देंहटाएंOr wo rasta waisa hi rhega jaane kabse kaam chal rha hai whape
Hahaha bhai padhne ke liye dhanyawad
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