संदेश

जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 11

चित्र
पांचवा दिन-गांव वालों से मुलाकात (16-02-2020- देरी के लिए क्षमा)                            पिछला भाग -      भाग -10                                                                                                                             अभी तक मनाली पहुंचने में जितनी भी जहमत उठाई थी, उसके बीच एक पल भी आराम नहीं किया था। पिछली रात साबी से सवाल-जवाब का दौर काफी लंबा चला, नतीजन सोने में काफी देर हो गई थी।  मनाली में दूसरे दिन की सुबह को आलस्य ने घेर लिया। ऐसा लग रहा है, जैसे दो दिन की थकान ने मेरी नींद को जकड़ लिया हो। रात को ये भी तय किया था, की सुबह जल्दी उठकर ट्रैक करते हुए पहाड़ के ऊपर से सनराइज देखेंगे। पर गहरी नींद के आगे यह सब रणनीति हवा होती दिखी। बड़ी मुश्किल से साबी के जगाने पर 9:00 बजे उठता हूं। रात भर पहाड़ों पर चलती हुई हवाओं का शोर कमरे के अंदर तक आ रहा था। मैं थोड़ा सा पर्दा हटा कर बाहर का मौसम देखता हूं, मौसम ने जैसे करवट ले ली हो। जहां कल मौसम एकदम साफ था। आज उसकी जगह घने बादलों ने ले ली। चिंंता इस बात की है, यदि बरसात या बर्फबारी हुई तो ऐसी स्थिति  मैं कह

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 10

चित्र
चोथा दिन -  सवाल जवाब का दौर।       ( 15-02-2020) खाना बनाते समय, दो सवालों के अधूरे जवाब मिलने पर ही मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई। मन ही मन सोच रहा हूं, यह बंदा घर से इतनी दूर हिमाचल में अकेला क्यों रहता है? कश्मीर में दो साल क्यों रुका? इसके पीछे की कहानी क्या है? एक एक पल इंतजार करना भारी हो रहा है। आगे कुछ पूछता उससे पहले साबी ने मेरी जिज्ञासा को भांपते हुए, बोला पहले खाना बना ले फिर शुरुआत से बताऊंगा। मैं भी राजी हो गया यह सोच कर कि अभी काफी रात बाकी है । आराम पूर्वक विस्तार से पूछूंगा। साबी तो खाना बनाने मैं जैसे कुशलता हासिल कर चुका है। खाने की महक पूरे कमरे में घुल रही है। वह कहते हैं ना खाने के स्वाद का अंदाजा उसे बनाते समय ही उसकी खुशबू से हो जाता है। बिल्कुल ऐसे ही स्वाद का अंदाजा दक्षिण भारत के मसालों की खुशबू से लग रहा है। यह मेरी खुशकिस्मती है कि मैं भारत के लगभग उत्तर में, एकदम दक्षिण भारत का खाना खा रहा हूं। वह भी एकदम लाजवाब। जब तक खाना बने, मैं तब तक बाहर लकड़ियों को जलाने की कोशिश करने लगा। आज मौसम एकदम साफ है। स्पष्ट तारों को देखने का भी अलग ही आनंद है। तापमान अभी से माइ

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 9

चित्र
चोथा दिन - साबी की अद्भुत जिंदगी।      (15-02-2020) जिंदगी में अक्सर यात्रा के दौरान ऐसे लोगों से टकराते है जो इस तरह का जीवन व्यतीत करते हैं, कि आपको लगता है कि यथार्थ में इस तरह से जीवन जीने की या तो सिर्फ कल्पना कर सकते हैं या फिर किस्से या कहानियों में पढ़ते हैं। साभी का जीवन भी कुछ कुछ इन्हीं किस्से कहानियों जैसा लग रहा है। चाय पर चर्चा करते हुए मैं जितने सवाल पूछ रहा हूं उतना ही अचरज में पड़ता जा रहा हूं। मुझे लगा सारी जानकारी अभी लेने से बेहतर है रात में पूछूंगा। अभी तो मनाली घूमने का उत्साह ज्यादा है। कल पूरे दिन सिर्फ चिप्स, बिस्कुट और केले पर गुजारा था। नतीजन सुबह पहले ही जोरों की भूख लगी है। दो बड़े कप चाय पीने पर भी भूख में कोई कमी ना आने पर, मैं झिझकते हुए साभी को बोलता हूं, भयंकर भूख लगी है। जवाब आता है क्या खाओगे। मैंने भी तपाक से बोला जो मिल जाए वो। साबी हंसते हुए बोलता है। अभी बनाते हैं साउथ का स्पेशल उपमा।  यह सुनते ही भूख और भी तेज हो गई। साबी स्टोव पर नाश्ता बनाने की तैयारी करने लगा। जिस स्टोव को देखे हुए एक अरसा हो गया हो। उसपे नाश्ता बनते हुए देखने पर भी खुशी मिल

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 8

चित्र
चौथा दिन - मनाली में स्वागत।    (15-02-2020) किसी भी जगह यात्रा करने से पहले हम सब उस जगह की  काल्पनिक रूपरेखा अपने मन में बना लेते हैं। मैंने भी यहां आने से पहले मनाली की तस्वीर अपने मन में बना ली थी। आज अंधेरे में दौड़ते वक्त भी उस काल्पनिक तस्वीर को सच्चाई से रूबरू कराने में अलग ही आनंद की अनुभूति मिल रही है। भले ही कुछ साफ ना दिख रहा हो। हालांकि मेरे रुकने का कोई ठोर ठिकाना नहीं है। चिंता होने के साथ मनाली पहुंचने की खुशी भी है। पहाड़ों पर तेजी से दौड़ते हुए दो तीन बार रास्ता भी भटक गया। इतनी रात गए कोई बाहर भी नहीं है जिससे रास्ता पूछ लूं। किस्मत से सही रास्ते पर पहुंचा। चढ़ाई इतनी है कि, पैरों ने जवाब दे दिया। कुछ देर बाद मुझे बताए हुए स्थान स्नो पीक ट्री होटल पहुंचने पर साबी को फोन मिलाता हूं। अब तो हद ही हो गई फोन ही स्विच ऑफ आ रहा है। मेरी हालत "काटो तो खून नहीं" वैसी हो चुकी हैं। 15-20 मिनट तक दिमाग के सारे घोड़े दौड़ाने के बाद भी कोई दूसरा विकल्प नजर नहीं आ रहा है। निराश होकर वापस फोन करने लगा पर परिणाम वहीं "स्विच ऑफ"। वापिस बस स्टैंड जाने की सोचने लगा।