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मई, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 11

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पांचवा दिन-गांव वालों से मुलाकात (16-02-2020- देरी के लिए क्षमा)                            पिछला भाग -      भाग -10                                                                                                                             अभी तक मनाली पहुंचने में जितनी भी जहमत उठाई थी, उसके बीच एक पल भी आराम नहीं किया था। पिछली रात साबी से सवाल-जवाब का दौर काफी लंबा चला, नतीजन सोने में काफी देर हो गई थी।  मनाली में दूसरे दिन की सुबह को आलस्य ने घेर लिया। ऐसा लग रहा है, जैसे दो दिन की थकान ने मेरी नींद को जकड़ लिया हो। रात को ये भी तय किया था, की सुबह जल्दी उठकर ट्रैक करते हुए पहाड़ के ऊपर से सनराइज देखेंगे। पर गहरी नींद के आगे यह सब रणनीति हवा होती दिखी। बड़ी मुश्किल से साबी के जगाने पर 9:00 बजे उठता हूं। रात भर पहाड़ों पर चलती हुई हवाओं का शोर कमरे के अंदर तक आ रहा था। मैं थोड़ा सा पर्दा हटा कर बाहर का मौसम देखता हूं, मौसम ने जैसे करवट ले ली हो। जहां कल मौसम एकदम साफ था। आज उसकी जगह घने बादलों ने ले ली। चिंंता इस बात की है, यदि बरसात या बर्फबारी हुई तो ऐसी स्थिति  मैं कह

असंभावनाओं भरी यात्रा। भाग-7

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तीसरा दिन- इंतजार       (14 व 15 फरवरी 2020)  बिलासपुर में भोजनालय पर बैठे-बैठे अनिश्चितता के भंवर में भयंकर रूप से उलझ रहा हूं। एक तो मुझे आज रात ही पहुंचना है दूसरा ना मेरे पास टेंट है, ना सर्दी का पूरा इंतजाम। यदि टेंट और स्लीपिंग बैग भी होता तो लिफ्ट ना मिलने की स्थिति में बाहर भी सो सकता था। परंतु परिस्थिति तो ऐसी है कि गर्म कपड़े भी पूरे नहीं है।  मैं बीच रास्ते मैं छोड़ने वाली लिफ्ट तो बिल्कुल नहीं ले सकता। सिर्फ और सिर्फ सीधी मनाली जाने वाले वाहनों में ही बैठना है। हकीकत यह भी है कि सीधे मनाली जाने वाले वाहनों के मिलने की संभावना बहुत कम है। दिक्कत यह भी है रात के समय कोई लिफ्ट भी नहीं देता। यदि मैं लिफ्ट लेकर यात्रा करता हूं तथा बीच रास्ते में लिफ्ट या मदद नहीं मिली तो, यह स्थिति किसी डरावने सपने के साकार होने जैसी होगी। जो कि मैं नहीं चाहता ऐसा हो। समय बिल्कुल रेत की तरह फिसल रहा है। मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा हूं। मैंने साबी को भी फोन करके बताया, मुझे पहुंचने में 2:00 बज जाएंगे। यह सुनकर उसने बताया कि मुझे जल्दी आना होगा, नहीं तो रात में घर नहीं ढूंढ पाओगे।

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 6

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तीसरा दिन- भगवान भरोसे 14-02-2020 चंडीगढ़ आईएसबीटी बस अड्डे से रास्ते के लिए खाने पीने की पूरी तैयारी करने के बाद, मनाली जाने वाले मार्ग पर पहुंच चुका हूं। 300 किलोमीटर का सफर लिफ्ट लेते हुए तय करना, कभी आशंकित तो कभी रोमांचित कर रहा है। लिफ्ट लेेते हुए घर से कभी 50 किलोमीटर दूर भी नहींं गया। आज इस अनजान रास्ते पर जाने का तय कर चुका हूं। यह बात सोच कर डर कम, रोमांच ज्यादा महसूस हो रहा है। कभी किताबो को भी इतने ध्यान से नहीं पढ़ा होगा जितना, गूगल मैप को खंगाल डाला। तथा बीच में पड़ने वाले बड़े शहर या कस्बे जोकि रास्ते में है, उन्हें चिन्हित कर लिया। ताकि रात होने की स्थिति मैं वहा रुकने की व्यवस्था कर सकू। इसे ढंग से डायरी में लिख लिया। इससे मुझे रास्ते का बिल्कुल सही अंदाजा हो गया। साथ ही साथ मैने मेरे मेजबान साबी और कुछ दोस्तों के नंबर भी लिख लिए, क्योंकि यदि रास्ते में कुछ अनहोनी होती है या फोन बंद होता है। तो किसी का फोन लेकर मैं इनसे संपर्क कर लूंगा। वैसे यह स्थिति ना आए तो ही बेहतर है। मैने कमर कस ली जाने के लिए। लिफ्ट लेने के लिए कोशिश करने लगा। सबसे पहले नालागढ़ जाने

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 5

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किस्मत हुई मेहरबान। तीसरा दिन 14-02-2020 चंडीगढ़ में ठंड इतनी ज्यादा है कि, मैं रात में दो रजाई ओढ़ कर सोया। सुबह अलार्म बजने से पहले ही उठ गया। हालांकि जल्दी उठना मेरी आदत में नहीं है। मगर मनाली जाने का उत्साह ही इतना है कि अपने आप आंख खुल गई।     नरेंद्र जी को बिना जगाए, मैं चंडीगढ़ की पहली सुबह का आनंद ले रहा हूं। साथ ही साथ मनाली जाने की रणनीति भी बना रहा हूं। काउच सर्फिंग के इतने शानदार अनुभव से मैं काफी खुश हो गया। मैं सोचने लगा क्यों ना मनाली मैं भी इसी ऐप के माध्यम से रुका जाए। एक बार फिर से किस्मत आजमा ली जाए।       मैं बेधड़क रिक्वेस्ट भेजने लगा। मुझे इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं है, कि बिना मेंबरशिप के केवल दस ही रिक्वेस्ट भेज सकते हैं। सात रिक्वेस्ट का प्रयोग तो चंडीगढ़ रुकने के लिए ही कर लिया था और तीन रिक्वेस्ट का आज प्रयोग कर लिया, तीनों की तीनों रिजेक्ट हो गई। अब दुबारा रिक्वेस्ट भेजने की अनुमति सात दिनों के बाद मिलेगी। मैं द्वंद में हूं, अब क्या करूं होटल भी नहीं ले सकता क्योंकि आईडी तो पर्स में ही रह गई और नगद पैसों की भी कमी है।   काफी सोच विचार करने के बाद अचानक मु

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग -4

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  चंडीगढ़ में नए दोस्त से मुलाकात। दूसरा दिन- 13-02-2020    रेलवे स्टेशन की ओर जाते समय, रास्ते की सबसे बड़ी दिक्कत चार्जर के बारे में सोच रहा हूं। इसका कोई दूसरा हल भी नहीं निकल रहा है। अकेले यात्रा करते समय सबसे अच्छा साथी मोबाइल ही होता है, परंतु उसके चार्जर की व्यवस्था नहीं हो रही है। अंततः  मुझे एक मोबाइल की दुकान दिखी, मेरे द्वारा चार्जर के  बारे में पूछने पर, दुकानदार ने एक लोकल और महंगा चार्जर  दिखाया। मुझे वह पसंद नहीं आया ।  क्योंकी मेरा मोबाइल C- टाइप चार्जर से चार्ज होता है और वह आसानी से मिलता भी नहीं है, तो मैंने एक कन्वर्टिबल खरीद लिया। यह सोच कर कि किसी ना किसी का चार्जर लेकर उससे चार्ज कर लूंगा। यह कन्वर्टिबल मेरे लिए संजीवनी साबित होगा। इस बात का अंदाजा आपको यात्रा वृतांत के अंत में हो जाएगा।       गलियों के मकड़जाल से गुजरते हुए। मैं आजादपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचा। स्टेशन ज्यादा बड़ा नहीं है और टिकट घर तो ऐसा लग रहा है, मानो स्वतंत्रता के बाद इसकी मरम्मत ही नहीं हुई है। वहां बैठी महिला कर्मचारी से चंडीगढ़ की ट्रेन के बारे में पूछने पर, उन्होंने बताया कि ट्रेन 4:00 बज

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग -3

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    दिल व दिमाग में कशमकश। दूसरा दिन-13 फरवरी 2020        जैसा कि बीती रात को तय किया था, उत्तराखंड जाने के लिए। मैं सुबह जल्दी उठ गया और मनोज को भी बोल दिया कि मैं उत्तराखंड जा रहा हूं। हालांकि वह राजी नहीं हुआ और मुझे रोकने लगा, परंतु परम मित्रता की यही पहचान होती है की मन की बात बोलनी नहीं पड़ती और मनोज उन परम मित्रों में से है। इसलिए उसने ज्यादा कोशिश नहीं की रोकने की।              मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ लोकेश को भी फोन किया। यह बताने को कि मैं उत्तराखंड आ रहा हूं। वह थोड़ा असमंजस में है मुझे बुलाना है या नहीं। क्योंकि उसे भी कहीं और जाना है वह मुझे एक बजे वापस फोन करने को कहता है। एक बजे का इंतजार ना करते हुए मैंने उत्तराखंड जाने का मन बना लिया।     दुबारा बैग पैक करते समय मुझे पता चला कि पर्स तो जयपुर ही भूल आया हूं। नगद मेरे पास है नहीं "दिल्ली नाम से दिलवालों की है पर कोई सीधे मुंह बात भी नहीं करता" इस बात का अंदाजा होते हुए मैंने मनोज को पैसे फोन पे(phonep pay) कर दिए, डिजिटल इंडिया का कुछ तो फायदा उठाया जाए और नकद ले लिया। जोकि काफी है, उत्तराखंड ज

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग-2

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यात्रा की शुरुआत। पहला दिन  -12 फरवरी 2020        मध्यमवर्गीय परिवारों में सरकारी नौकरी का महत्व बहुत अधिक है। तैयारी करते समय घूमने का सोचना भी पाप होता है, परन्तु प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं को तो पता ही है, परीक्षाओं की तिथि का अनुमान तो शायद भगवान भी नहीं लगा सकते। हम किस खेत की मूली है।            एक साल रेलवे की तैयारी करने के बाद जब परीक्षा की तिथि नजदीक ना दिखी तो मैने भी मन बना लिया घुमक्ककड़ी का, पर कोई तैयार ही नहीं है। अब मुझे इंतज़ार है तो सिर्फ मौके का पर आसार नजर नहीं आ रहे है।  12 फरवरी 2020          की सुबह मेरे मित्र मनोज का फोन आता है, जो कि दिल्ली में इंजीनियर के पद पर कार्यरत है। उसने बताया कि उसका तबादला पंजाब हो गया है, इसके लिए उसे तीन दिन का अवकाश मिला है और साथ ही साथ दिल्ली घूमने का न्योता भी दे दिया। मुझे जिस मौके कि तलाश थी वो मिल गया, मैने तुरंत हामी भर दी और आनन फानन में सामान पैक करके, दोपहर की ट्रेन में लद के जयपुर से निकल गया दिल्ली के लिए,।                     दोस्त के पास जाने और तीन दिन घूमने के उत्साह में, मैने ज्यादा सामान भी नह

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग- 1

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        परिचय-  यात्रा की बानगी          "नियति आपसे क्या करवाना चाहती है, इसका अंदाजा किसी को नहीं होता है" सुना तो खूब है, परन्तु इसे अपनी यात्रा  में पूर्ण रूप से चरितार्थ होते देख भी लिया। शीर्षक के अनुरूप ही इस यात्रा में घटनाएं घटी है। इस यात्रा में पहले से तय कुछ भी नहीं है और संभावनाएं तो अनगिनत है।              यदि पहले से सब तय हो तो यात्रा का रोमांच कम हो जाता है, इस बात का पता मुझे यात्रा पूरी होने के बाद पता चला। मुझे जाना दिल्ली था, निकला उत्तराखंड और पहुंच गया मनाली। वह भी अल्प रुपयों में, सुनकर अजीब लगता है ना।                     यह यात्रा  मेरी ज़िन्दगी के 9 रोमांचकारी दिनों की है, जिनमें न जाने कितने यादगार लम्हे है और लोगों की कहानियां है। किसी ने बिल्कुल सही कहा है "10 किताबे पढ़ने से मिलने वाले अनुभव से कहीं ज्यादा अनुभव एक यात्रा में होता है"।                  इस यात्रा के दौरान मिलने वाले अनुभवों ने अजनबियों के प्रति मेरा रवैया बिल्कुल बदलकर रख दिया।  इसी यात्रा में मैने "विश्वाश का खेल भी खेला" और 95%  बार