असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग 11

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पांचवा दिन-गांव वालों से मुलाकात (16-02-2020- देरी के लिए क्षमा)                            पिछला भाग -      भाग -10                                                                                                                             अभी तक मनाली पहुंचने में जितनी भी जहमत उठाई थी, उसके बीच एक पल भी आराम नहीं किया था। पिछली रात साबी से सवाल-जवाब का दौर काफी लंबा चला, नतीजन सोने में काफी देर हो गई थी।  मनाली में दूसरे दिन की सुबह को आलस्य ने घेर लिया। ऐसा लग रहा है, जैसे दो दिन की थकान ने मेरी नींद को जकड़ लिया हो। रात को ये भी तय किया था, की सुबह जल्दी उठकर ट्रैक करते हुए पहाड़ के ऊपर से सनराइज देखेंगे। पर गहरी नींद के आगे यह सब रणनीति हवा होती दिखी। बड़ी मुश्किल से साबी के जगाने पर 9:00 बजे उठता हूं। रात भर पहाड़ों पर चलती हुई हवाओं का शोर कमरे के अंदर तक आ रहा था। मैं थोड़ा सा पर्दा हटा कर बाहर का मौसम देखता हूं, मौसम ने जैसे करवट ले ली हो। जहां कल मौसम एकदम साफ था। आज उसकी जगह घने बादलों ने ले ली। चिंंता इस बात की है, यदि बरसात या बर्फबारी हुई तो ऐसी स्थिति  मैं कह

असंभावनाओ भरी यात्रा। भाग -4

  चंडीगढ़ में नए दोस्त से मुलाकात। दूसरा दिन- 13-02-2020

  रेलवे स्टेशन की ओर जाते समय, रास्ते की सबसे बड़ी दिक्कत चार्जर के बारे में सोच रहा हूं। इसका कोई दूसरा हल भी नहीं निकल रहा है। अकेले यात्रा करते समय सबसे अच्छा साथी मोबाइल ही होता है, परंतु उसके चार्जर की व्यवस्था नहीं हो रही है। अंततः मुझे एक मोबाइल की दुकान दिखी, मेरे द्वारा चार्जर के बारे में पूछने पर, दुकानदार ने एक लोकल और महंगा चार्जर  दिखाया। मुझे वह पसंद नहीं आया

 क्योंकी मेरा मोबाइल C- टाइप चार्जर से चार्ज होता है और वह आसानी से मिलता भी नहीं है, तो मैंने एक कन्वर्टिबल खरीद लिया। यह सोच कर कि किसी ना किसी का चार्जर लेकर उससे चार्ज कर लूंगा। यह कन्वर्टिबल मेरे लिए संजीवनी साबित होगा। इस बात का अंदाजा आपको यात्रा वृतांत के अंत में हो जाएगा।

      गलियों के मकड़जाल से गुजरते हुए। मैं आजादपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंचा। स्टेशन ज्यादा बड़ा नहीं है और टिकट घर तो ऐसा लग रहा है, मानो स्वतंत्रता के बाद इसकी मरम्मत ही नहीं हुई है। वहां बैठी महिला कर्मचारी से चंडीगढ़ की ट्रेन के बारे में पूछने पर, उन्होंने बताया कि ट्रेन 4:00 बजे आएगी। अभी भी मेरे पास काफी समय है। मैं एकांत में बैठकर अभी भी खुद को अंतिम निर्णय के लिए तैयार कर रहा हूं कि जाना है या नहीं मनाली।


  
रोमांच और डर वाले मिश्रण का मिलाजुला भाव पैदा हो रहा है। खैर मैंने फोन को चार्ज करने और चंडीगढ़ जाने का तो इंतेजाम कर लिया है। पर मैं रुकूंगा कहां चंडीगढ़ में, यह दिमाग में आते ही एक झटका सा लगा। मैं फिर से सोचने लगा।
   मुझे यूट्यूब पर ट्रैवल वीडियोस देखने का शौक है। यहीं से मैंने काउच सर्फिंग(Couchsurfing) ऐप के बारे में सुना था। मैंने सोचा क्यों ना इस ऐप को प्रयोग किया जाए। यह एक ऐसा ऐप है, जिसके माध्यम से आप किसी दूसरी सिटी या देश में किसी अनजान के घर रुक सकते हैं। वो भी मुफ्त, मैंने चंडीगढ़ जाने का अंतिम निर्णय इस ऐप पर छोड़ दिया। साथ ही साथ यह भी तय किया यदि 3 घंटों में मुझे कोई रुकवाने के लिए तैयार होता है तो मैं ट्रेन में बैठ जाऊंगा।
      
         फटाफट मैंने रिक्वेस्ट भेजना शुरू कर दिया। तथा बेहद आशावादी होकर इंतजार करने लगा। थोड़ी देर मैं एक मैसेज आता है। "Hey... I am not in the city bro, otherwise I will definitely host you" यह मैसेज देखते ही मुझ में एक उम्मीद सी जग गई। मैं सोचने लगा कि कोई ना कोई तो एक्सेप्ट कर ही लेगा। दो-तीन लोगों के और मैसेज आए, परंतु कोई शहर से बाहर है तो कोई व्यस्त है। मुझे भी लग रहा है, गलती उनकी नहीं मेरी है, क्योंकि मेहमान भी दो दिन पहले बता कर आते हैं। मैं तो अचानक जा रहा हूं, वह भी अनजान बनकर। समय 2:30 बज गए है, रुकने का इंतजाम अभी भी नहीं हुआ है।
 
     मैं निराश होकर लोगों से बातें और फोटोस ले रहा हूं। तभी एक मैसेज आता है। "Your request is accepted by Narendra Singh" मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैंने तुरंत मोबाइल नंबर की अदला-बदली कर ली,साथ ही यह भी बता दिया कि मैं चंडीगढ़ कितने बजे पहुंच जाऊंगा। रुकने का इंतजाम होते ही, मै तुरंत टिकट खिड़की पर बिजली की रफ्तार से भागा और टिकट लिया। अब तो मुझे स्टेशन भी बढ़िया लग रहा है और चेहरे पर खुशी साफ झलक रही है। अब इंतजार है तो सिर्फ ट्रेन आने का, उत्साह के मारे पर अब समय नहीं कट रहा है। 
        


                       थोड़ी देर बाद ट्रेन आती है जैसा की सबको उम्मीद रहती है एकदम खचाखच भरी हुई, बड़ी जद्दोजहद के बाद चढ़ पाया। सोचने लगा अब पीछे मुड़कर नहीं देख सकता हूं। किस्मत से सीट भी मिल गई तथा सोनीपत के बाद ट्रेन बिल्कुल खाली ही हो गई। 
           अब शुरू होता है, फोन को स्विच ऑन और ऑफ करने का खेल। पहले के दौर में यात्रा करते समय किताबें भी मनोरंजन का साधन होती थी, पर अब उसकी जगह मोबाइल ने ले ली है। विडंबना यह है की ना मेरे पास किताब है ना चार्जर है। सभी यात्रियों को गाने और वीडियोस सुनते देख मेरा भी मन हो रहा है। पर क्या कर सकते हैं, मुझे रात के लिए बैटरी बचानी है। तो मन पर काबू किया व फोन बंद ही रहने दिया। परंतु फोटोग्राफी के शौक के कारण जब भी कोई मनोरम दृश्य दिखता, तो स्विच ऑन करके फोटो लेने से खुद नहीं रोक पाता। हालांकि ज्यादातर समय फोन स्विच ऑफ ही रहा।

  
             
      11:30 बजे मैं चंडीगढ़ पहुंचा और ठंड का एहसास भी भरपूर हो रहा है। अपने मेजबान नरेंद्र जी को फोन किया तो उन्होंने बताया कि, वह ऑफिस से 12:00 बजे तक फ्री हो पाएंगे। मैं इंतजार करने लगा और सोचने लगा, जो सवाल अब तक नहीं दिमाग़ में नही आए, वो अचानक आने लगे की कैसे मैं किसी अनजान के घर कैसे रुक सकता हूं, केसे पेश आना है। जाहिर सी बात है हर किसी के मन में यह सवाल उठना लाजमी है। 
          जैसा कि पहले लेख में जिकर् किया था "विश्वाश के खेल"(GAME OF FAITH) का तो
 इस खेल की, ये पहली पारी साबित होने वाली है। नरेंद्र जी के पास जो पहले रुक कर गए थे। उनके अनुभव नरेंद्र जी की प्रोफाइल पर थे। वह काफी शानदार अनुभव थे, तो मैं इतना चिंतित नहीं हूं।
     
      12:00 बजे के आसपास फोन आता है। उन्होंने बताया कि वो स्टेशन आ चुके है। मैं तुरंत भागता हूं, चूंकि चंडीगढ़ पहले गया नहीं। तो मैं गलत तरफ चला गया, फिर भागता भागता सही स्थान पर पहुंचा। एकाएक एक कार आकर रूकती है, शीशा नीचे होता है। अंदर से आवाज आती है "अभिलाष"। मैंने कहा "हां"। इस तरह नरेंद्र जी से मुलाकात होती है। मैं कार में बैठ जाता हूं। थोड़ी देर बात करने के बाद, सारी घबराहट दूर हो गई, पता ही नहीं चला कि अभी थोड़ी देर पहले ही मिले हैं। वह मुझे चंडीगढ़ के बारे में और मैं जयपुर के बारे में बता रहा हूं। नरेंद्र जी ने यह भी बताया कि वह चंडीगढ़ में किसी सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करते हैं और रहने वाले कसौली हिमाचल के हैं। ये भी बताया खुद भी घूमने के काफी शौकीन है। मुझे यह जानकर भी ताज्जुब हुआ कि वह मुझे 35 किलोमीटर दूर से लेने आए हैं।

          एक बज चुके है, घर पहुंचने में। खाना बनाया, खाते-खाते बातें करने लगे, घर एकदम गजब है। अकेले रहते हुए भी काफी बेहतरीन तरीके से व्यवस्थित कर रखा है। मैं थक कर एकदम चूर हो चुका हूं। कल मनाली कैसे जाना है और वहां कहां रुकना है, इसके बारे में सोचते सोचते कब नींद आ गई पता ही नहीं चला।






भाग-1 यात्रा की बानगी 

भाग-2- यात्रा की शरूआत

भाग -3 दिल व दिमाग में कशमकश

                  भाग -11

टिप्पणियाँ

  1. Are Mere laadle Ek Sath post kar de beta Roj Roj Intezar nahin Kiya Jata

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  2. ये यात्रा बिना मनाली गए ही मनाली का चित्रण कर रही है , आपका वैरागीपन महसूस किया जा सकता है ।

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  3. Nice interesting story ultimate
    Mja agya intjaar rahta h aage ki story ka ki ab kya hoga kaise hoga manali etc

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  4. Super yaar Salam h aapke jajba ko main aapki Puri Karni padi hai Jabardast fantastic mind blowing

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