दिल व दिमाग में कशमकश। दूसरा दिन-13 फरवरी 2020
जैसा कि बीती रात को तय किया था, उत्तराखंड जाने के लिए। मैं सुबह जल्दी उठ गया और मनोज को भी बोल दिया कि मैं उत्तराखंड जा रहा हूं। हालांकि वह राजी नहीं हुआ और मुझे रोकने लगा, परंतु परम मित्रता की यही पहचान होती है की मन की बात बोलनी नहीं पड़ती और मनोज उन परम मित्रों में से है। इसलिए उसने ज्यादा कोशिश नहीं की रोकने की।
मैं जल्दी जल्दी तैयार हुआ लोकेश को भी फोन किया। यह बताने को कि मैं उत्तराखंड आ रहा हूं। वह थोड़ा असमंजस में है मुझे बुलाना है या नहीं। क्योंकि उसे भी कहीं और जाना है वह मुझे एक बजे वापस फोन करने को कहता है। एक बजे का इंतजार ना करते हुए मैंने उत्तराखंड जाने का मन बना लिया।
दुबारा बैग पैक करते समय मुझे पता चला कि पर्स तो जयपुर ही भूल आया हूं। नगद मेरे पास है नहीं "दिल्ली नाम से दिलवालों की है पर कोई सीधे मुंह बात भी नहीं करता" इस बात का अंदाजा होते हुए मैंने मनोज को पैसे फोन पे(phonep pay) कर दिए, डिजिटल इंडिया का कुछ तो फायदा उठाया जाए और नकद ले लिया। जोकि काफी है, उत्तराखंड जाने के लिए।
मनोज भी दफ्तर जाने की हड़बड़ी में है, तो मैंने उससे मेट्रो की पूरी जानकारी लेकर अपने दिमाग में छाप ली, कि कैसे आईएसबीटी बस अड्डा पहुंचना है। जहां से उत्तराखंड की बस मिलेगी।
फरवरी के महीने में इस बार कुछ खास ठंड नहीं पढ़ रही है। मैंने सोचा क्यों ना चद्दर और लेदर जैकेट यहीं पर छोड़ दिया जाए, कौन वजन को लेकर चलेगा (यह मेरी दूसरी सबसे बड़ी गलती साबित होने वाली है )और मैं निकल गया आईएसबीटी जाने के लिए।
मैं उत्सुकता और रोमांच के साथ मेट्रो में बैठ गया और एकटक दरवाजे के ऊपर लगी स्टेशन बताने वाली टिमटिमाती लाइट को देखने लगा। आजादपुर मेट्रो स्टेशन पहुंचने से पहले लोकेश का फोन आया और उसने मना कर दिया, उत्तराखंड आने के लिए। मैं काफी उदास मुद्रा में आजादपुर मेट्रो स्टेशन उतर गया। मैंने यह ठान लिया कहीं ना कहीं तो घूमने जरूर जाना है और मैं इसे चुनौती के रूप में लेने लगा काफी देर मेट्रो स्टेशन पर सोचने के बाद मनाली जाने का सोचा।
इस पशोपेश की स्थिति में में, खुद ही खुद से सवाल करने लगा हूं और उसका जवाब भी खुद ही दे रहा हूं। एक मन वापस फ्लैट पर चले जाने को बोल रहा है, चिंता इस बात की है, ना पैसे का प्रबंध है (क्योंकि घर वालों को तो बताया ही नहीं ), ना ही चार्जर और ना पहनने को गर्म कपड़े है। पर मन तो मनाली जाने का बन चुका है।
जेहन में जितने भी समझदारी भरे सुझाव मन में आ रहे है, सब सोच रहा हूं। इन सब मे इतना मशगूल हो गया हूं, कि मेट्रो स्टेशन पर बैठे-बैठे डेढ़ घंटा गुजार दिया। अंत में काफी सोच विचार करने के बाद मैंने मनाली जाने का तय किया। यह भी तय किया कि यह यात्रा बिल्कुल कम खर्चे में घूमनी होगी।
आखिरकार गूगल बाबा का सहारा लेकर चंडीगढ़ की ट्रेन खोजने लगा, तो पता चला कि ट्रेन आजादपुर रेलवे स्टेशन से 4:00 बजे निकलेगी जो कि आजादपुर मेट्रो स्टेशन से 2 किलोमीटर दूर है। इस बात ने मुझ में अलग ही जोश भर दिया, की रेलवे स्टेशन इतनी पास है। अभी 12:00 बज रहे हैं मैं निकल गया मेट्रो स्टेशन से रेलवे स्टेशन की ओर ।
चलते चलते सोचने लगा कि किस्मत भी क्या गजब खेल, खेल रही है। पहले चार्जर भुला, फिर पर्स और अब चद्दर व जैकेट को भी चला कर ही छोड़ दिया। पेट में चूहे कूदना भी शुरू हो गए हैं, सुबह से कुछ खाया भी नहीं था। तो मैंने मोलभाव कराकर 1 किलो केले खरीद लिए। केले खाकर ऊर्जा के साथ फिर से स्टेशन की ओर कूच कर दिया।
3. चौथे भाग का लिंक- भाग 4 4. पांचवे भाग का लिंक-। भाग 5 5. छठे भाग का लिंक-। भाग 6 6. सातवें भाग का लिंक। भाग 7 7. आठवें भाव का लिंक।
8. भाग नौ का लिंक
बहुत मजेदार लेख है भाई अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा, आशा है जल्दी ही पढ़ने को मिलेगी।
जवाब देंहटाएंAre bhaiya aap likhte bhut gjb ho or Ek din achi story lukho ge
जवाब देंहटाएंDhanyawad , aage ke parts ko bhi jarur padhe
हटाएंअभिलाष जी आपने यात्रा व्रतांत मे शब्द सामंजस्य और संयोजन का उत्तम उपयोग किया है.. आशा है आप इसे इसी तरह आगे बढ़ाते रहे...
जवाब देंहटाएंसुझाव के लिए धन्यवाद
हटाएंWaiting for next chapter so write fast
जवाब देंहटाएंSure
हटाएंInteresting story
जवाब देंहटाएंWaiting next part
Jaldi hi
हटाएंBhai mastt likhata h
जवाब देंहटाएंLitha ja bhai log sab sath ma h😍😍
Dhanyawad bhai
हटाएंare wahh kya hindi h ,priy bhraata bde adbhut lekh likhe h aapne to dil jeetliya hmara😂😝
जवाब देंहटाएंDhanyawad aur Kosis acchi hai hindi likhne ki 👍👍😂
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